एक धुन हूँ कैसे मैं तुझ को साज़ करूँ
एक लफ्ज़ हूँ कैसे तुझ को अल्फाज़ करूँ
जो कल ना था कैसे उसको आज करूँ
खुद से बता कैसे मैं तुझ को नाराज़ करूँ
एक पत्थर को कैसे अब मैं ताज करूँ
मिट कर कहो कैसे तुझ को आगाज़ करूँ
सबको है खबर कैसे उसको राज़ करूँ
खामोश रहके कैसे तुझ को आवाज़ करूँ
चंद क़लाम से क्या तुझ पे गाज करूँ
हर सुखन ज़माने का तुझको नवाज़ करूँ
अधूरा ही रहा पूरा वो कामकाज करूँ
तेरा ही दिया बयाँ तुझ को अन्दाज़ करूँ
खुद से भी ज्यादा मैं तुझपे नाज़ करूँ
मेरी हर साँस में मैं तुझ को रियाज़ करूँ
बुरा तो खुद हूँ क्या तुझको वाʼज़ करूँ
क्यूँ दिखावे की अदा तुझको नमाज़ करूँ
रूह में बसे हो क्या तुम से लाज करूँ
सजदे में अपना सर तुझको नियाज़ करूँ
"क़लन्दर"