Sunday 7 May 2017

Kabhi Hum...

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कभी हम ...

कभी हम एक थे 
चाहे गरीब थे 
मगर करीब थे 

मैं मन्दिर जाता था 
तुम मस्जिद जाते थे 
मैं गीता पढता था 
तुम क़ुरान पढ़ते थे 

कभी लड़ते और झगड़ते थे 
मगर फिर भी साथ रहते थे 
मिलकर रोते और हॅसते थे 

अब हम तुम अलग हो गये 
वो बाँटकर हमे चले गये 
हम एक से दो 
दो से तीन हो गये 
फासले कितने गहरे हो गये 

जब भाई भाई के लहू का 
प्यासा हो गया 
जन्नत का रंग लाल हो गया 
आतंकवाद से तबाह हो गया 
जगत के लिए तो एक नया 
तमाशा हो गया 

जवान इधर भी मर रहे हैं 
जवान उधर भी मर रहे हैं 
नफरत की आग में क्यों 
हम दोनों जल रहे हैं 

क्या यही हमारे नसीब थे ???

कभी हम एक थे 
चाहे गरीब थे 
मगर करीब थे 



Ashwin Joglekar